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झारखंड की धरती पर खड़ा ब्रिटिश डर : पाकुड़ के मार्टेलो टॉवर की कहानी

झारखंड की धरती पर खड़ा ब्रिटिश डर : पाकुड़ के मार्टेलो टॉवर की कहानी

झारखंड के पाकुड़ जिले में स्थित मार्टेलो टॉवर न सिर्फ एक ऐतिहासिक इमारत है, बल्कि यह उस दौर की गवाह है जब भारत में अंग्रेजी हुकूमत अपनी जड़ें मज़बूत कर रही थी और संथाल आदिवासी अपने अस्तित्व, संस्कृति और सम्मान की रक्षा के लिए संग्राम कर रहे थे। यह टॉवर 1856 में उस समय बनाया गया था जब संथाल विद्रोह पूरे इलाके में ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ आग की तरह फैल रहा था। पाकुड़ के सिद्धू-कान्हू पार्क के एक कोने में खड़ा यह टॉवर एक मौन प्रहरी की तरह आज भी अपनी जगह पर अडिग खड़ा है — मानो यह हर आने-जाने वाले को इतिहास के उस पन्ने की ओर बुला रहा हो, जिसमें साहस, विद्रोह और रणनीति की गाथाएं दर्ज हैं। मार्टेलो टॉवर का निर्माण अंग्रेज अफसर सर मार्टिन ने करवाया था ताकि संथाल आंदोलन की गतिविधियों पर निगरानी रखी जा सके और किसी भी हमले से पहले सुरक्षात्मक रणनीति बनाई जा सके। यह टॉवर संथाल आदिवासियों के आंदोलन की तीव्रता और ब्रिटिश शासन की चिंता दोनों का प्रमाण है। इसकी गोलाकार बनावट, ऊँचाई और स्थान-चयन इसे एक अद्वितीय स्थापत्य बनाता है। जहां एक ओर यह टॉवर ब्रिटिशों के लिए एक सुरक्षा केंद्र था, वहीं दूसरी ओर यह आजादी की उस गुमनाम लड़ाई की पहचान भी बन गया है जो संथालों ने लड़ी थी — बिना किसी मंच, बिना किसी घोषणा, सिर्फ अपने हक और सम्मान के लिए। आज यह टॉवर पाकुड़ की पहचान बन चुका है। यह ना केवल इतिहास के छात्रों और पर्यटकों को आकर्षित करता है, बल्कि झारखंड के जनजातीय संघर्ष की गहराई को समझने का अवसर भी प्रदान करता है। यह एक ऐसा स्थल है, जहां अतीत की आहटें आज भी सुनी जा सकती हैं — पत्थरों के बीच से उभरती कहानियों की तरह....

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 

मार्टेलो टॉवर, झारखंड  पाकुड़ के इतिहास का एक अहम हिस्सा है। यह सिर्फ एक ईंट-पत्थर की इमारत नहीं, बल्कि संथालों और अंग्रेजों के बीच हुए संघर्ष का मूक गवाह है। इसका निर्माण 1856 में अंग्रेज अफसर सर मार्टिन द्वारा करवाया गया था। उस समय वे पाकुड़ के दसवें उप-विभागीय अधिकारी (SDO) थे। यह वह समय था जब झारखंड के संथाल आदिवासी अपने हक और इज्जत की लड़ाई लड़ रहे थे। संथाल विद्रोह, जो 1855-56 में हुआ, झारखंड के आदिवासी इतिहास की सबसे बड़ी और सबसे साहसी घटनाओं में से एक मानी जाती है। इस आंदोलन का नेतृत्व सिद्धू, कान्हू, चांद, भैरव, फूलो और झानो जैसे नायकों ने किया था। इन सभी ने अपने समाज को एकजुट कर अंग्रेजों, साहूकारों और जमींदारों के अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई। अंग्रेज इस विद्रोह से घबरा गए थे। उन्हें डर था कि अगर संथालों का यह आंदोलन और फैल गया, तो उनका शासन डगमगा सकता है। इसी डर और रणनीति के तहत उन्होंने ऐसे टावर बनवाए, जहाँ से वे आसपास के इलाकों की निगरानी कर सकें और कोई हमला होने से पहले ही उसे रोक सकें। मार्टेलो टॉवर उसी रणनीति का हिस्सा था।

 यह टावर क्यों बनाया गया था?

  • अंग्रेजों को संथाल आंदोलन की हर गतिविधि पर नजर रखनी थी।
  • उन्हें एक ऐसा ऊँचा और सुरक्षित स्थान चाहिए था, जहाँ से दूर-दूर तक देखा जा सके।
  • इस टावर से सैनिक पहरा दे सकते थे, आपातकालीन सिग्नल भेज सकते थे और हमले की स्थिति में खुद को बचा भी सकते थे।
  • यह एक सुरक्षा चौकी और निगरानी केंद्र दोनों था।

 टावर की बनावट और खासियत

  • यह टावर आकार में छोटा लेकिन बेहद मजबूत है।
  • इसकी दीवारें मोटी और गोलाकार हैं, जो इसे दुश्मन के हमले से सुरक्षित रखती थीं।
  • इसकी ऊँचाई इतनी थी कि यहां से पूरे इलाके पर नजर रखी जा सकती थी।

यह देखने में ब्रिटिश साम्राज्य के अन्य मार्टेलो टावरों की तरह है, जो खासतौर पर युद्धकाल में बनाए जाते थे।

 टावर का इतिहास से जुड़ाव

इस टावर को देखकर साफ महसूस होता है कि झारखंड की धरती पर आज़ादी के लिए संघर्ष केवल 1947 में शुरू नहीं हुआ था, बल्कि उससे बहुत पहले ही आदिवासी समाज ने अन्याय के खिलाफ अपनी लड़ाई शुरू कर दी थी। संथालों का विद्रोह उस समय का सबसे साहसिक आंदोलन था, जिसमें हजारों लोगों ने जान की परवाह किए बिना ब्रिटिश हुकूमत और सामाजिक शोषण के खिलाफ खड़े होने का साहस दिखाया। अंग्रेजों ने इस टावर को अपने डर और चालाकी से बनवाया, लेकिन आज यह टावर उसी संथाल विद्रोह की यादगार बन गया है — जिसे मिटाने के लिए ही इसे बनाया गया था।

वास्तुकला और बनावट 

मार्टेलो टॉवर की बनावट बहुत ही खास और सोच-समझकर बनाई गई थी। यह टावर ब्रिटिश साम्राज्य में बनाए गए अन्य मार्टेलो टावरों के जैसा ही है, जो मुख्य रूप से सैनिक सुरक्षा और निगरानी के लिए बनाए जाते थे। यह  छोटा लेकिन मजबूत गोलाकार किला है। इसकी दीवारें बेहद मोटी और मजबूत हैं, ताकि किसी भी हमले से इसे बचाया जा सके। टावर की ऊँचाई इतनी है कि इसके ऊपर से चारों ओर दूर-दूर तक निगरानी की जा सकती थी। इसका ऊपरी हिस्सा पूरी तरह खुला होता था, जहां सैनिक खड़े होकर इलाके पर नज़र रखते थे। टावर की बनावट यह बताती है कि इसे सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि पूरी तरह एक सैन्य रणनीतिक ठिकाने के रूप में डिजाइन किया गया था। यहां से सैनिक किसी भी खतरे को पहले ही भांप सकते थे और तुरंत कार्रवाई कर सकते थे। इसकी गोलाई इसे तोपों और गोलियों के हमले से भी बचाती थी। यह टावर हमें यह भी दिखाता है कि ब्रिटिश हुकूमत किस हद तक अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए योजनाएं बनाती थी।

 स्थान और वातावरण 

मार्टेलो टॉवर, झारखंड के पाकुड़ शहर में स्थित है। यह सिद्धू कान्हू पार्क के दक्षिण-पूर्व कोने में बना हुआ है। इस स्थान की एक खास बात यह है कि यह शहर के बीचोंबीच होते हुए भी बहुत शांत, हरियाली से भरपूर और साफ-सुथरा है। पार्क का वातावरण बहुत सुंदर है, और टावर के चारों ओर फूलों की क्यारियाँ, पेड़-पौधे और बैठने की व्यवस्था की गई है। यहाँ आकर लोगों को शांति और ताजगी दोनों का अनुभव होता है। बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक, सभी यहाँ समय बिताना पसंद करते हैं।

 वर्तमान स्थिति और देखरेख

आज के समय में, मार्टेलो टॉवर को स्थानीय प्रशासन द्वारा एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संरक्षित किया गया है। इसकी देखरेख की ज़िम्मेदारी जिला प्रशासन और नगर निकाय के पास है। टावर के चारों ओर बने सिद्धू कान्हू पार्क को सजाया और व्यवस्थित किया गया है, जिससे यहाँ आने वाले लोगों को अच्छा अनुभव हो। अब यह टावर सिर्फ इतिहास की निशानी नहीं, बल्कि लोगों के टहलने, घूमने और इतिहास को करीब से महसूस करने की जगह बन चुका है। हाल के वर्षों में इसे और विकसित करने की योजना बनी है, ताकि यह टावर झारखंड की ऐतिहासिक पहचान बन सके और युवाओं को उनके संघर्षपूर्ण इतिहास से जोड़ा जा सके।

पर्यटन दृष्टिकोण 

मार्टेलो टॉवर अब धीरे-धीरे पाकुड़ जिले का प्रमुख पर्यटन स्थल बनता जा रहा है। खासकर वे लोग जो भारत के आदिवासी इतिहास और ब्रिटिश काल के संघर्षों में रुचि रखते हैं, वे यहाँ ज़रूर आते हैं। यहाँ आने वाले लोग इस टावर को देखकर संथाल विद्रोह और ब्रिटिशों की रणनीतियों को बेहतर तरीके से समझने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा, यहाँ से दिखने वाला प्राकृतिक दृश्य भी बहुत सुंदर होता है — हरे-भरे पेड़, शांत वातावरण और साफ आसमान इस जगह को और खास बनाते हैं। सिद्धू कान्हू पार्क की वजह से यह जगह अब बच्चों और परिवारों के लिए भी मनोरंजन और पिकनिक का पसंदीदा स्थान बन चुकी है। यह स्थल शिक्षण यात्राओं (Educational tours) के लिए भी एक उपयुक्त स्थान है, जहाँ विद्यार्थी अपने इतिहास को जीवंत रूप में देख सकते हैं।

 कैसे जाएँ? 

पाकुड़ तक पहुँचना आसान है। आप रेल, सड़क और हवाई मार्ग से यहाँ आ सकते हैं:

 रेल मार्ग से:

पाकुड़ रेलवे स्टेशन झारखंड के प्रमुख स्टेशनों में से एक है। यहाँ पर कई ट्रेनों का ठहराव होता है। स्टेशन से ऑटो या रिक्शा के जरिए आप 10-15 मिनट में सिद्धू कान्हू पार्क पहुँच सकते हैं।

 सड़क मार्ग से:

पाकुड़ NH-133 और NH-114A जैसे मुख्य सड़कों से जुड़ा हुआ है। साहिबगंज, दुमका, गोड्डा और रामपुरहाट जैसे आस-पास के शहरों से नियमित बसें और टैक्सियाँ मिलती हैं।

 

मार्टेलो टॉवर, पाकुड़ सिर्फ एक ऐतिहासिक इमारत नहीं, बल्कि झारखंड की वीरता और संघर्ष का प्रतीक है। यह टावर उस समय की याद दिलाता है, जब अंग्रेजों की ताकत के सामने संथाल आदिवासी अपने हक और आत्मसम्मान के लिए खड़े हुए थे। यह टावर आज भी अपनी चुप्पी में बहुत कुछ कहता है —
संघर्ष की आवाज़, वीरता की मिसाल, और आज़ादी की पहली दस्तक। आज यह जगह ना केवल इतिहास प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है, बल्कि पर्यटकों और युवाओं को प्रेरणा देने वाला स्थल भी है। आने वाली पीढ़ियाँ इस टावर को देखकर अपने गौरवशाली अतीत से जुड़ सकें — यही इसकी सबसे बड़ी सफलता है।



 


 

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