झारखंड की धरती पर एक गांव ऐसा भी है, जहाँ हर ईंट, हर दीवार और हर मंदिर इतिहास की कोई न कोई कथा सुनाता है। ये है मालूटी — दुमका जिले की गोद में बसा एक प्राचीन गांव, जो 108 मंदिरों की नगरी के नाम से प्रसिद्ध है। यह गांव केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि शिल्पकला, पौराणिक गाथाओं और लोक आस्था का जीवंत संगम है। यहाँ की दीवारों पर उकेरी गई टेराकोटा कला सदियों पुरानी कहानियों को बिना शब्दों के बयान करती है। प्राकृतिक शांति, पौराणिक दिव्यता और ऐतिहासिक गौरव से ओत-प्रोत यह स्थल आज भी वैसा ही शांत और रहस्यमयी है, जैसा सैकड़ों साल पहले था। मालूटी सिर्फ एक जगह नहीं — यह एक अनुभव है, एक दर्शन है, जो हर उस यात्री को अपने भीतर समा लेता है जो इसकी ओर एक बार निगाह कर दे। झारखंड की इस छुपी हुई धरोहर को जानना, देखना और महसूस करना — भारत की सांस्कृतिक आत्मा को करीब से जानने जैसा है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि :
मालूटी गांव का इतिहास 17वीं शताब्दी से जुड़ा है। कहा जाता है कि बंगाल के सेन राजवंश के राजा ने अपने वीर सेनापति बसंत राय को इस क्षेत्र को ईनाम में दिया था। बसंत राय ने इसे अपनी राजधानी बनाया और मालूटी को 1860 में कर-मुक्त राजधानी (Tax-Free Capital) घोषित किया। राजा बसंत राय और उनके वंशजों ने यहाँ 108 मंदिरों का निर्माण करवाया, जिनमें से आज भी करीब 60 मंदिर सुरक्षित हैं। ये मंदिर धार्मिक आस्था के साथ-साथ उस समय की शिल्पकला और सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाते हैं। हर मंदिर की दीवारों पर टेराकोटा (पकी मिट्टी) से बनाई गई खूबसूरत आकृतियाँ हैं, जो रामायण, महाभारत, देवी-देवताओं की कथाओं और ग्रामीण जीवन की झलक पेश करती हैं। मालूटी का इतिहास इस बात का प्रमाण है कि यह गाँव केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत भी है, जो आज भी झारखंड की मिट्टी में जीवित है।
स्थापत्य कला और टेराकोटा की चमक:
मालूटी मंदिरों की सबसे खास बात है इनकी निर्माण शैली। ये मंदिर टेराकोटा ईंटों से बनाए गए हैं जिन पर नायाब नक्काशी की गई है। हर मंदिर की दीवारें रामायण, महाभारत, देवी-देवताओं की कथाओं, पौराणिक पात्रों और ग्रामीण जीवन के चित्रों से सजी हुई हैं।
मुख्य विशेषताएं:
- मंदिरों की ऊँचाई ज्यादा नहीं है लेकिन उनकी बनावट मजबूत और सुंदर है।
- दीवारों पर टेराकोटा से उकेरी गई कथाएं जैसे – राम-रावण युद्ध, कृष्ण-राधा लीला, दुर्गा महिषासुर मर्दिनी, शिव तांडव आदि देखी जा सकती हैं।
- हर मंदिर किसी न किसी देवी या देवता को समर्पित है – काली, शिव, विष्णु, दुर्गा, भैरव, आदि।
इन मंदिरों को देखकर यह स्पष्ट होता है कि मालूटी सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि कला और संस्कृति का संग्रहालय है जो मिट्टी की ईंटों में अमर कहानियाँ कहता है।
धार्मिक आस्था का केंद्र
मालूटी के मंदिर केवल स्थापत्य के लिए ही प्रसिद्ध नहीं हैं, बल्कि यहाँ आज भी पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान बड़ी श्रद्धा से किए जाते हैं। यहाँ की देवी मालूटी काली माता की विशेष मान्यता है। लोग दूर-दराज से यहाँ अपनी मन्नतें लेकर आते हैं।
प्रमुख त्योहार:
- काली पूजा
- शिवरात्रि
- नवरात्रि व दुर्गा पूजा
- ग्राम देवी पूजा
इन अवसरों पर मंदिर प्रांगण में सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन कीर्तन, हवन और ग्रामीण मेलों का आयोजन होता है।
मालूटी कैसे पहुँचे?
मालूटी तक पहुँचना आज पहले से आसान हो गया है। यह झारखंड के दुमका जिला मुख्यालय से लगभग 55 किमी की दूरी पर स्थित है और पश्चिम बंगाल के रामपुरहाट से सिर्फ 20 किमी दूर है।
हवाई मार्ग:
निकटतम हवाई अड्डा है नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, कोलकाता – लगभग 250 किमी दूर।
रेलवे मार्ग:
- रामपुरहाट रेलवे स्टेशन (प. बंगाल) – 20 किमी
- दुमका रेलवे स्टेशन (झारखंड) – 55 किमी
इन स्टेशनों से टैक्सी या लोकल वाहन आसानी से मिल जाते हैं।
सड़क मार्ग:
- मालूटी, दुमका-रामपुरहाट इंटरस्टेट हाइवे पर स्थित है।
- निजी गाड़ी, टैक्सी या बस द्वारा यहां आसानी से पहुँचा जा सकता है।
प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यटन अनुभव:
मालूटी सिर्फ एक मंदिर नगरी नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक पर्यटन स्थल भी है। यहाँ के मंदिर हरे-भरे जंगलों और शांत वातावरण के बीच स्थित हैं, जिससे यह स्थान ध्यान, योग और आत्मिक शांति के लिए उपयुक्त बन जाता है।
पर्यटक यहाँ:
- पुरातात्विक फोटोग्राफी
- सांस्कृतिक अध्ययन
- ग्रामीण जीवन के अनुभव
- धार्मिक दर्शन
का भरपूर आनंद ले सकते हैं।
वर्तमान स्थिति और संरक्षण प्रयास:
हाल के वर्षों में झारखंड सरकार और भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) ने मालूटी के संरक्षण पर ध्यान देना शुरू किया है। कुछ प्रमुख प्रयास:
1. मंदिरों की मरम्मत और पुनरुद्धार कार्य
2. पर्यटन साइनबोर्ड, दिशा संकेत और सुविधाओं की स्थापना
3. स्थानीय युवाओं को गाइड और होमस्टे सुविधा से जोड़ना
4. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार
हाल ही में मालूटी को हेरिटेज विलेज घोषित करने की प्रक्रिया में तेजी आई है और इसे झारखंड के प्रमुख हेरिटेज सर्किट में शामिल किया जा रहा है।
मीडिया और मालूटी:
- मालूटी पर कई डॉक्युमेंट्री बन चुकी हैं जैसे कि "108 मंदिरों वाला गाँव"।
- कई न्यूज चैनलों और ट्रैवल ब्लॉगरों ने इसे "झारखंड का खजाना" करार दिया है।
- राज्य पर्यटन विभाग ने भी डिजिटल प्रचार सामग्री तैयार की है जिससे लोग मालूटी के बारे में जान सकें।
यात्रा सुझाव:
- अक्टूबर से मार्च के बीच मालूटी जाना सबसे अच्छा समय है – मौसम सुहावना होता है।
- यहाँ रहने की सुविधा सीमित है, लेकिन नजदीकी शहर रामपुरहाट या दुमका में होटल उपलब्ध हैं।
- अपनी यात्रा के दौरान कैमरा, टॉर्च, स्नैक्स और पूजा सामग्री साथ रखें।
- स्थानीय लोगों से बात करके उनकी लोककथाएं और मंदिरों के इतिहास जानना भी एक अनोखा अनुभव होगा।
मालूटी एक ऐसा स्थान है जो आज के शोरगुल और व्यावसायिकता से दूर, धर्म, संस्कृति और इतिहास की शुद्धता को सहेजे हुए है। यह स्थान उन यात्रियों के लिए आदर्श है जो शांति, कला, ग्रामीण भारत और आध्यात्मिकता की तलाश में हैं। आज मालूटी हमारे लिए सिर्फ एक पुरानी कहानी नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है — संरक्षण की, प्रचार की और आने वाली पीढ़ियों को यह धरोहर सौंपने की।