झारखंड की धरती अपने प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक विविधता और पौराणिक रहस्यों के लिए जानी जाती है। यहां की हर पर्वत चोटी, हर नदी, हर जंगल सिर्फ भूगोल का हिस्सा नहीं, बल्कि श्रद्धा, साधना और शौर्य की कहानियों का वाहक है। यही कारण है कि झारखंड को अक्सर "वनों की भूमि" के साथ-साथ "आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र" भी कहा जाता है।
इन्हीं रहस्यमयी और शक्तिपूर्ण स्थलों में से एक है — मां योगिनी मंदिर, जो गोड्डा जिले के पथरगामा प्रखंड के बारकोप गांव में स्थित है। यह मंदिर न केवल श्रद्धालुओं के लिए आस्था का स्थान है, बल्कि साधकों, तांत्रिकों और शोधकर्ताओं के लिए भी एक रहस्यमयी अनुभव का केंद्र है। गोड्डा, जो झारखंड का एक सीमावर्ती जिला है, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन बहुत कम लोगों को यह ज्ञात है कि इसी गोड्डा की छांव में छुपा हुआ है एक गुप्त शक्तिपीठ, जो आज भी अपने दिव्य रहस्यों और चमत्कारों को अपने भीतर समेटे हुए है। मां योगिनी मंदिर, जिसका उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में गुप्त योगिनी के नाम से हुआ है, न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि एक ऐसा स्थान है जहाँ पांडवों ने शरण ली, जहाँ मां सती की शक्ति गिरी, जहाँ तंत्र साधना की सिद्ध परंपरा आज भी जीवित है, और जहाँ की गुफा आज भी चमत्कारी अनुभवों से भरपूर है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां न केवल प्रकृति से जुड़ाव होता है, बल्कि अदृश्य दिव्यता का अनुभव भी होता है। यह स्थान आज भी इतना रहस्यमय और शक्तिशाली है कि यहां आने वाला हर श्रद्धालु केवल दर्शन नहीं करता, बल्कि भीतर तक कुछ महसूस करता है।
झारखंड में जहां एक ओर देवघर का बाबा बैद्यनाथ मंदिर शिवभक्तों के लिए प्रसिद्ध है, वहीं मां योगिनी मंदिर एक गुप्त, तांत्रिक और शक्ति-साधना का ऐसा केंद्र है, जो आज भी अधिकांश लोगों की जानकारी से परे है, लेकिन साधकों और जानकारों के बीच अत्यंत पूजनीय है।
ऐतिहासिक और पौराणिक पृष्ठभूमि
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द्वापर युग और महाभारत से संबंध
मां योगिनी मंदिर का इतिहास द्वापर युग से जुड़ा हुआ माना जाता है। महाभारत काल में जब पांडव अज्ञातवास के दौरान विभिन्न स्थानों पर छिपकर रह रहे थे, तब उन्होंने कुछ समय के लिए झारखंड के इस क्षेत्र में शरण ली थी। उस समय यह स्थान घने जंगलों, पर्वतों और गुफाओं से घिरा हुआ था, और लोगों की नजरों से काफी दूर था.
मान्यता है कि पांडवों ने इस स्थल पर निवास के दौरान मां योगिनी की आराधना की थी। उस समय यह स्थान गुप्त योगिनी के नाम से प्रसिद्ध था, क्योंकि यह देवी स्वयं को प्रकट नहीं करती थीं, बल्कि सिर्फ अनुभूति के रूप में साधकों को दर्शन देती थीं।
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शिव-सती और शक्तिपीठ कथा
मां योगिनी मंदिर का दूसरा ऐतिहासिक अध्याय शिव और सती की कथा से जुड़ा हुआ है। जब राजा दक्ष ने अपने यज्ञ में भगवान शिव का अपमान किया और उनकी पुत्री सती ने स्वयं को अग्नि में भस्म कर दिया। यह देखकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो उठे और उन्होंने सती के मृत शरीर को उठाकर पूरी पृथ्वी पर तांडव करना आरंभ कर दिया। ब्रह्मांड की रक्षा हेतु भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को कई टुकड़ों में विभाजित कर दिया। मान्यता है कि सती की बाईं जांघ इस स्थान पर गिरी थी, जिससे यह स्थान एक शक्ति पीठ के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। भारत के धार्मिक ग्रंथों में 51 शक्ति पीठों का उल्लेख मिलता है, लेकिन योगिनी पुराण में 52 शक्ति पीठ बताए गए हैं। विद्वानों का मत है कि मां योगिनी मंदिर वही गुप्त 52वां सिद्ध पीठ है, जिसका वर्णन खुलकर नहीं हुआ।
तंत्र साधना और गुप्त ऊर्जा का केंद्र
मां योगिनी मंदिर केवल आस्था का स्थान नहीं है, यह एक ऐसा तांत्रिक सिद्धपीठ भी है, जिसे साधक वर्षों से गुप्त साधना और शक्ति प्राप्ति के लिए चुनते रहे हैं। यहां की पूजा-पद्धति और वातावरण की तुलना देश के सबसे प्रसिद्ध तांत्रिक स्थल — कामख्या मंदिर (असम) — से की जाती है।
कामख्या की तरह यहां भी:
- मंदिर में तीन मुख्य द्वार हैं,
- मूर्ति की जगह पिंड की पूजा की जाती है,
- और साधक यहां गुफाओं में एकांत साधना में लीन रहते हैं।
यह स्थान वर्षों से उन साधकों का केंद्र रहा है, जो भौतिक दुनिया से दूर, आध्यात्मिक शक्तियों और तंत्र ज्ञान की खोज में लगे रहते हैं। पुरानी मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन समय में इस मंदिर परिसर में नरबलि (मानव बलि) की परंपरा भी थी — जिसे अंग्रेजों के शासनकाल में बंद कराया गया। यह परंपरा इस बात का प्रमाण है कि यह स्थल केवल भक्ति नहीं, बल्कि भय और बलिदान से जुड़ा तांत्रिक क्षेत्र भी रहा है। मंदिर के ठीक सामने एक वटवृक्ष है, जिसे बहुत पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि इसी वृक्ष के नीचे साधक बैठकर घोर तपस्या करते थे और तंत्र सिद्धि प्राप्त करते थे। आज भी यह वृक्ष एक विशेष ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। मंदिर की गुफाओं में अब भी कई साधु-संत निवास करते हैं, जो दिन-रात मां योगिनी की उपासना और गुप्त साधनाओं में डूबे रहते हैं। इन साधकों की उपस्थिति आज भी इस स्थान को रहस्यमय, जीवंत और ऊर्जावान बनाए हुए है।
मंदिर की वास्तुकला और गुफा का रहस्य
मां योगिनी मंदिर का मुख्य गर्भगृह एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। वहां तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को लगभग 354 सीढ़ियों की सीधी और कठिन चढ़ाई करनी पड़ती है। यह चढ़ाई एक साधारण यात्रा नहीं, बल्कि श्रद्धा, संकल्प और विश्वास की परीक्षा है। गर्भगृह में प्रवेश के लिए एक संकरी, अंधेरी गुफा से गुजरना पड़ता है। बाहर से देखने पर यह गुफा इतनी छोटी लगती है कि कोई भी व्यक्ति हिचकिचा जाए। भीतर घुप अंधेरा होता है, और दीवारें नुकीली चट्टानों से घिरी होती हैं। लेकिन जैसे ही आप इस रहस्यमयी गुफा में प्रवेश करते हैं, एक दिव्य प्रकाश दिखाई देता है — जबकि वहां बिजली या कृत्रिम रोशनी की कोई व्यवस्था नहीं, यह रोशनी कहां से आती है? यह गुफा इतनी सकरी होते हुए भी कैसे किसी को नहीं रोकती? यह आज तक एक रहस्य बना हुआ है। गर्भगृह के भीतर एक प्राकृतिक पिंड की पूजा होती है, जो मां योगिनी का प्रतीक मानी जाती है। इसके चारों ओर तांत्रिक चिह्न, साधुओं की मूर्तियाँ, और पत्थरों से बनी गुफाओं की श्रृंखला है — जो इस स्थान की गूढ़ता को और भी गहरा बना देती हैं। यह अनुभव केवल आँखों से देखने का नहीं, बल्कि आत्मा से महसूस करने का है।
मनोकामना मंदिर – श्रद्धा का दूसरा चरण
मां योगिनी मंदिर के ठीक दाहिनी ओर की पहाड़ी पर एक और पवित्र स्थान है — मनोकामना मंदिर। यह स्थान विशेष रूप से उन भक्तों के लिए प्रिय है, जो अपने जीवन की कोई गुप्त या खास कामना लेकर आते हैं। कहा जाता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मन्नत कभी खाली नहीं जाती।
कई श्रद्धालु बताते हैं कि उन्होंने यहां जो मांगा, वो जल्द ही पूरा हो गया। यह मंदिर विशेष रूप से महिलाओं के बीच लोकप्रिय है — वे संतान सुख, वैवाहिक जीवन, अच्छे स्वास्थ्य और रोजगार जैसे उद्देश्य लेकर यहां आकर मां से प्रार्थना करती हैं।
यह मंदिर श्रद्धा का दूसरा चरण है — जहां मौन प्रार्थना भी सुनी जाती है।
त्योहार, मेले और आस्था की भीड़
मां योगिनी मंदिर साल भर श्रद्धालुओं से भरा रहता है, लेकिन कुछ अवसर ऐसे होते हैं जब यहां का वातावरण पूरी तरह दिव्यता और उल्लास से भर जाता है:
- नवरात्रि में 9 दिन तक भव्य पूजा, कीर्तन, अर्चना और रात्रि साधनाएं होती हैं।
- महाशिवरात्रि पर तांत्रिक साधक और श्रद्धालु विशेष तांत्रिक अनुष्ठान के लिए एकत्र होते हैं।
- श्रावण मास में बाबा बैद्यनाथ धाम दर्शन के बाद श्रद्धालु मां योगिनी के दर्शन करने आते हैं।
- गुप्त नवरात्रि में तांत्रिकों की गुप्त साधनाएं और गूढ़ क्रियाएं की जाती हैं।
इन सभी अवसरों पर मंदिर समिति और स्थानीय ग्रामीण मिलकर शांति, सुरक्षा और श्रद्धा का सुंदर माहौल बनाते हैं — जिससे हर आगंतुक का अनुभव स्मरणीय और पवित्र बन सके।
पर्यटन की दृष्टि से एक अद्भुत स्थल
मां योगिनी मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह एक पूर्ण आध्यात्मिक और प्राकृतिक पर्यटन स्थल भी है। यहां दर्शन के साथ-साथ पर्यटक कुछ अनोखा अनुभव कर सकते हैं:
- 354 पत्थरों की पहाड़ी सीढ़ियाँ, जो तप और श्रद्धा की प्रतीक हैं
- घने जंगलों के बीच की शांति, जहां प्रकृति खुद साधना करती दिखती है
- गुफा का अलौकिक अनुभव, जो विज्ञान से परे है
- स्थानीय आदिवासी संस्कृति, जो परंपरा और प्रकृति से गहराई से जुड़ी है
- आसपास के ग्रामीण बाजार, जो सादगी और आत्मीयता का प्रतीक हैं
- यह स्थान ट्रैकिंग, फोटोग्राफी, अध्ययन और शांति की तलाश करने वालों के लिए भी एक स्वर्ग है।
कैसे पहुंचे मां योगिनी मंदिर?
स्थान : बारकोपा गांव, पथरगामा प्रखंड, जिला गोड्डा (झारखंड)
गोड्डा से दूरी : लगभग 15 किलोमीटर — सड़क मार्ग से सीधा और सुगम
गोड्डा रेलवे स्टेशन – 15 किमी
भागलपुर रेलवे स्टेशन – 75 किमी (लंबी दूरी के यात्रियों के लिए)
गोड्डा शहर से टैक्सी, ऑटो या लोकल बस से मंदिर परिसर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।
सड़क अब पक्की और सुरक्षित है।
पर्यटकों के लिए सुझाव
- गुफा में प्रवेश से पहले स्थानीय गाइड की सलाह लें
- फिसलन से बचने के लिए रबर सोल वाले जूते पहनें
- पानी और प्रसाद साथ रखें
- मंदिर परिसर में शांति और अनुशासन बनाए रखें
- बरसात के मौसम में विशेष सावधानी बरतें