झारखंड के देवघर जिले में स्थित त्रिकूट पर्वत एक धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है। यह स्थान न केवल तीर्थयात्रियों के लिए बल्कि प्रकृति प्रेमियों और साहसिक यात्रा के शौकीनों के लिए भी एक प्रमुख आकर्षण है |
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त्रिकूट पर्वत का परिचय
त्रिकूट पर्वत देवघर शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित है। यह पहाड़ तीन चोटियों से मिलकर बना है, इसी कारण इसे “त्रिकूट” कहा जाता है। ये तीन चोटियाँ भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) को समर्पित मानी जाती हैं। त्रिकूट पर्वत की ऊँचाई लगभग 2470 फीट (753 मीटर) है, जो इसे देवघर का सबसे ऊँचा प्राकृतिक स्थान बनाती है।
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धार्मिक महत्व
त्रिकूट पर्वत का धार्मिक महत्व बहुत प्राचीन और गहरा है। ऐसा कहा जाता है कि जब रावण कैलाश से शिवलिंग को लंका ले जा रहा था, तो उसने त्रिकूट पर्वत पर कुछ समय के लिए विश्राम किया था। यह स्थान रावण के ‘हेलिपैड’ के रूप में प्रसिद्ध है। पर्वत पर स्थित त्रिकूटाचल महादेव मंदिर और स्वामी संपदानंद का आश्रम हजारों श्रद्धालुओं का आस्था का केंद्र है।
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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
त्रिकूट पर्वत से जुड़ी कई ऐतिहासिक और पौराणिक कथाएँ हैं। माना जाता है कि यह स्थान वेदों और पुराणों के काल से ही तप और ध्यान का केंद्र रहा है। स्वामी संपदानंद जी महाराज ने 1924 में यहाँ एक आश्रम की स्थापना की थी जो आज भी संचालित है। पर्वत के आसपास कई साधु-संतों के तपस्थल और गुफाएँ देखी जा सकती हैं।
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प्रकृति की गोद में
त्रिकूट पर्वत प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। पहाड़ की तीनों चोटियों से देवघर और आसपास के गाँवों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। मानसून के समय यहाँ की हरियाली, झरने और कोहरे की चादर पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। पर्वत से मयूराक्षी नदी की उत्पत्ति होती है, जो पश्चिम बंगाल की ओर बहती है।
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रोपवे सुविधा और दुर्घटना
2009 में यहाँ रोपवे सेवा शुरू की गई थी, जिससे लोग जल्दी और आराम से पहाड़ की चोटी तक पहुँच सकते थे। रोपवे की लंबाई लगभग 766 मीटर थी, और इसमें 25 केबिन थे। लेकिन अप्रैल 2022 में हुए एक हादसे ने सबको झकझोर दिया। केबल टूटने से कई लोग फँस गए और कुछ की जान भी गई। उसके बाद से यह सेवा अस्थायी रूप से बंद कर दी गई है। सरकार इस सेवा को पुनः सुरक्षित तरीके से शुरू करने की योजना पर काम कर रही है।
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वर्तमान स्थिति
वर्तमान में रोपवे सेवा बंद है, लेकिन सीढ़ियों और ट्रैकिंग मार्ग के ज़रिए लोग त्रिकूट पर्वत की यात्रा कर सकते हैं। ऊपर महादेव मंदिर और सुंदर आश्रम में ध्यान और पूजा के लिए श्रद्धालु नियमित रूप से आते हैं। आसपास छोटी दुकानें, जलपान केंद्र और विश्राम के स्थान भी उपलब्ध हैं।
आसपास के प्रमुख स्थल
- त्रिकूट पर्वत के आसपास कई अन्य दर्शनीय स्थल हैं:
- तपोवन: यह एक पहाड़ी स्थान है जहाँ तपोनाथ महादेव का प्राचीन मंदिर स्थित है। यहाँ की गुफाओं में ऋषि-मुनियों का ध्यान स्थल माना जाता है।
- देवघर का बैद्यनाथ धाम: त्रिकूट पर्वत से लगभग 16 किलोमीटर दूर स्थित यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहाँ कांवड़ यात्रा के दौरान आते हैं।
- नौलखा मंदिर: यह मंदिर रानी चंद्रावती देवी द्वारा बनवाया गया था और इसकी वास्तुकला बहुत ही सुंदर है।
कैसे पहुँचें
- रेल मार्ग: नजदीकी रेलवे स्टेशन जसिदीह जंक्शन है, जो त्रिकूट पर्वत से लगभग 7 किलोमीटर दूर है। यहाँ से टैक्सी या ऑटो द्वारा पर्वत तक पहुँचा जा सकता है।
- सड़क मार्ग: देवघर बस स्टैंड से त्रिकूट पर्वत के लिए सीधी बसें और टैक्सियाँ उपलब्ध हैं। निजी वाहन से जाना भी आसान है।
- हवाई मार्ग: देवघर एयरपोर्ट (DGH) यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा है, जहाँ से देश के प्रमुख शहरों से उड़ानें उपलब्ध हैं।
यात्रा का सर्वोत्तम समय
त्रिकूट पर्वत की यात्रा के लिए सितंबर से मार्च का समय सबसे उत्तम होता है। बारिश के बाद यहाँ की हरियाली और शीत ऋतु की ठंडी हवा यात्रा को और भी सुखद बनाती है। सावन और महाशिवरात्रि के दौरान यहाँ श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है।
उपयोगी सुझाव
- पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण आरामदायक जूते पहनें।
- मानसून में यात्रा करें तो फिसलन से बचें।
- पानी की बोतल और हल्का खाना साथ रखें।
- स्थानीय गाइड से जानकारी लें तो अनुभव बेहतर होगा।
- मंदिर में शांति और श्रद्धा बनाए रखे
त्रिकूट पर्वत केवल एक तीर्थ स्थल नहीं है, यह एक ऐसा स्थान है जहाँ आस्था, प्रकृति और रोमांच तीनों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यह स्थान झारखंड के पर्यटन मानचित्र में एक अनमोल रत्न की तरह है। यहाँ की शांत वादियाँ, ऐतिहासिक मंदिर, आध्यात्मिक वातावरण और प्राकृतिक दृश्य हर किसी के मन को छू जाते हैं।