नवरत्न गढ़ झारखंड के गुमला जिले में स्थित एक ऐतिहासिक किला है, जिसे 16वीं शताब्दी में नागवंशी राजा दुर्जन शाह ने मुगल शैली में बनवाया था।
झारखंड के गुमला जिले के सिसई प्रखंड स्थित नगर गांव में बसा है नवरत्न गढ़, जिसे डोइसा गढ़ भी कहा जाता है। यह स्थान न सिर्फ एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि झारखंड की समृद्ध विरासत, स्थापत्य कला और नागवंशी राजवंश की शान का प्रतीक भी है। झारखंड के संरक्षित स्मारकों में 13वें स्थान पर दर्ज यह किला आज भी अपने भव्य स्वरूप और रहस्यमयी इतिहास से लोगों को आकर्षित करता है।
इतिहास में दर्ज नवरत्न गढ़ का गौरवशाली अध्याय
16वीं शताब्दी में नागवंशी राजा महाराजा दुर्जन शाह द्वारा बनवाया गया यह किला मुग़ल स्थापत्य शैली की छाप को दर्शाता है। उन्होंने इस किले का नाम रतनगढ़ रखा, जो बाद में नवरत्न गढ़ के नाम से विख्यात हुआ। हालांकि दुर्जन शाह स्वयं इस किले में स्थायी रूप से नहीं रह पाए, फिर भी उन्होंने इसे नागवंशी साम्राज्य की अस्थायी राजधानी बनाया। नागवंशी वंश की विशेषता यह रही कि वे अपनी राजधानी समय-समय पर बदलते रहते थे। महाराजा देव (1642-1676), महाराजा राम शाह (1676-1704) और महाराजा रघुनाथ शाह (1704-1764) के शासनकाल में नवरत्न गढ़ नागवंशी राज्य की राजधानी रहा। इसके बाद यह राजधानी पालकोट गढ़ स्थानांतरित हो गई।
वास्तुकला की बेमिसाल मिसाल
करीब 100 एकड़ क्षेत्र में फैला यह गढ़ प्राचीन भारतीय और मुगल वास्तुकला का अद्भुत संगम है। इसका मुख्य आकर्षण है पांच मंजिला वर्गाकार भवन, हालांकि आज इसकी एक मंजिल जमीन में समा चुकी है, और शेष चार मंजिलें ही दिखाई पड़ती हैं। हर मंजिल में 9-9 कमरे बने हुए हैं। पत्थर की मोटी पट्टियों से बनी सीढ़ियां, मेहराबदार दरवाजे, गोल-चौकोर छतें और लकड़ी की नक्काशीदार छतें इसकी भव्यता को दर्शाती हैं। गढ़ के निर्माण में लाहौरी ईंट, चुना-सुर्खी और पत्थरों का प्रयोग किया गया है, जो इसे न सिर्फ मजबूत बनाते हैं, बल्कि स्थापत्य कला का श्रेष्ठ उदाहरण भी पेश करते हैं।
राजसी जीवन की झलकियां
- नवरत्न गढ़ में अनेक आकर्षक हिस्से हैं जो रानी और दरबारी जीवन को दर्शाते हैं
- रानी निवास: रानियों के लिए बना सुंदर परिसर
- कचहरी घर: न्याय व्यवस्था के संचालन हेतु
- कमल सरोवर (जिसे नारियल तालाब भी कहा जाता है): सुंदर पत्थरों से बना एक बड़ा सरोवर
- रानी कुआं: सीढ़ीनुमा सुंदर कुआं, जहां रानियां स्नान करती थीं
- धोबी मठ: ईंटों से बना विशाल ढांचा
- भूल-भुलैया (रानी लुकाईयर): मनोरंजन हेतु बना लघु लेकिन उत्कृष्ट भूल-भुलैया, जो लखनऊ की भूल-भुलैया की याद दिलाती है
इसके अलावा किले के बाहर कपिलनाथ मंदिर और भैरव मंदिर भी स्थित हैं, जो इसकी धार्मिक विरासत को दर्शाते हैं।
रक्षा व्यवस्था और रहस्यमयी सुरंग
गढ़ की सुरक्षा के लिए पहाड़ी क्षेत्र में एक संतरी पोस्ट बनाया गया था, जहां से शत्रुओं की गतिविधियों पर नजर रखी जाती थी। किले से तालाब तक एक गुप्त सुरंग भी बनी हुई थी, जिसका उपयोग संकट के समय भागने या पानी तक पहुंचने के लिए किया जाता था। प्रवेश द्वार विशाल और मजबूत है, जो इसकी सुरक्षा रणनीति को दर्शाता है।
पुरातात्विक महत्व और संरक्षण
भारत सरकार के पुरातत्व विभाग (ASI) ने इस ऐतिहासिक किले का सर्वेक्षण किया है और इसे झारखंड का 13वां संरक्षित स्मारक घोषित किया है। किले का स्थापत्य, इतिहास और रहस्यमयी संरचनाएं न सिर्फ इतिहासकारों के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी हैं।
कैसे पहुंचे नवरत्न गढ़?
यह किला रांची से लगभग 40 मील की दूरी पर नेशनल हाईवे-43 के निकट स्थित है। यह गुमला जिले के सिसई प्रखंड अंतर्गत नगर गांव में स्थित है। सड़क मार्ग से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।
संभावनाएं और आज की स्थिति
हालांकि आज यह किला जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है, फिर भी इसकी भव्यता बरकरार है। उचित संरक्षण और प्रचार-प्रसार से यह स्थान झारखंड के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक बन सकता है। स्थानीय लोग और इतिहास प्रेमी चाहते हैं कि इस गढ़ को और बेहतर तरीके से संरक्षित किया जाए, ताकि यह आने वाली पीढ़ियों को झारखंड के गौरवशाली इतिहास से परिचित करा सके, नवरत्न गढ़ सिर्फ एक किला नहीं, बल्कि एक सभ्यता की कहानी है। यह झारखंड की सांस्कृतिक विरासत, स्थापत्य कला और नागवंशी शौर्य का जीवित प्रमाण है। यह अतीत की एक झलक है, जो वर्तमान को गौरवान्वित करती है और भविष्य को प्रेरित।