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भारत का पहला कमर्शियल फिश फार्म बना ‘किंग फिशरीज’, रांची के एक्वामैन निशांत कुमार की अनोखी पहल

निशांत कुमार की कहानी यह साबित करती है कि अगर हौसला हो तो नई राहें खुद बन जाती हैं। रांची के एक्वामैन ने झारखंड को मछली पालन के क्षेत्र में देशभर में पहचान दिलाई है

रांची (झारखंड): कहते हैं अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी सपना हकीकत बन सकता है। रांची के निशांत कुमार ने इस कहावत को सच कर दिखाया है। एमबीए की पढ़ाई कर और बैंगलोर में मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ उन्होंने एक ऐसा सफर शुरू किया, जो अब पूरे देश के लिए प्रेरणा बन चुका है। निशांत आज ‘रांची के एक्वामैन’ के नाम से मशहूर हैं। उन्होंने 2018 में अपने दो दोस्तों के साथ मछली पालन की शुरुआत की। शुरुआत में अनुभव की कमी के कारण नाकामी मिली, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। देशभर में ट्रेनिंग ली और फिर दोबारा रातू क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों से मछली पालन शुरू किया।

देश का पहला कमर्शियल फिश फार्म

निशांत ने ‘किंग फिशरीज’ के नाम से भारत का पहला कमर्शियल फिश फार्म तैयार किया है। यह फार्म न केवल झारखंड का बल्कि पूरे भारत का सबसे बड़ा और सबसे आधुनिक फिश फार्म माना जाता है।

यहां पर 5 उन्नत तकनीकों से मछली पालन किया जा रहा है —

  •  बायोफ्लॉक तकनीक
  •  रिसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम (RAS)
  •  जलाशय आधारित फिश फार्मिंग
  •  केज कल्चर
  •  पारंपरिक पोंड फिश फार्मिंग

200 टन सालाना उत्पादन, 300 से ज्यादा लोग जुड़े

इस फार्म में हर साल करीब 200 टन मछली का उत्पादन होता है। प्रोडक्शन लागत करीब 75% है, और मछलियों की कीमत के अनुसार 20-25% मुनाफा होता है। निशांत के साथ करीब 10 लोग सीधे और 300 लोग अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। यहां रेहु, कतला, ग्रास क्राप, पंगास, मोनोसेक्स तिलापिया, सिंघी, कोइ, रुपचंद, अमूरकार्प जैसी लगभग 10 प्रकार की देशी-विदेशी मछलियों के साथ-साथ एक्वेरियम मछलियों का भी पालन किया जा रहा है। इन मछलियों की मांग झारखंड के अलावा बिहार और छत्तीसगढ़ में भी है।

तकनीकी विस्तार और एक्वा टूरिज्म

2019 में फार्म पर 74 बायोफ्लॉक टैंक बनाए गए, जिनमें प्रत्येक में 15,000 लीटर पानी का आर्टिफिशियल इकोसिस्टम तैयार किया गया है। आरएएस सिस्टम के तहत 1.25 लाख लीटर पानी की क्षमता वाले 8 टैंकों में मछली पालन किया जा रहा है, जिसमें 24 घंटे बिजली की जरूरत होती है। एक्वा टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए फार्म से सटे पार्क में लोग विजिट कर सकते हैं। यहां मछलियों को देख सकते हैं, पकड़ सकते हैं और खरीद भी सकते हैं। सरकार के साथ मिलकर यहां ट्रेनिंग और डेमोंस्ट्रेशन विजिट्स भी कराए जाते हैं।

चुनौतियां भी कम नहीं

निशांत बताते हैं कि मछली पालन की सबसे बड़ी चुनौती मौसम में बदलाव है। इसके अलावा यह सेक्टर अब तक असंगठित है और मछलियों का कोई तय दाम नहीं होता। लेकिन इसके बावजूद, वे इस क्षेत्र को संगठित और बेहतर बनाने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं।

राष्ट्रीय सम्मान और पहचान

उनकी मेहनत को राष्ट्रीय स्तर पर भी सराहना मिली है। उन्हें दो बार डॉ. हीरालाल चौधरी बेस्ट फार्मर अवार्ड मिल चुका है।

निशांत कुमार की कहानी यह साबित करती है कि अगर हौसला हो तो नई राहें खुद बन जाती हैं। रांची के एक्वामैन ने झारखंड को मछली पालन के क्षेत्र में देशभर में पहचान दिलाई है और युवाओं के लिए रोजगार और आत्मनिर्भरता का एक बेहतरीन उदाहरण पेश किया है।
 

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