झारखंड की धरती सिर्फ कोयला, जंगल और खनिजों के लिए नहीं जानी जाती, बल्कि यहां बसी है एक ऐसी आस्था जो हर सावन में करोड़ों दिलों को जोड़ती है — बाबा बैद्यनाथ धाम। देवघर स्थित यह ऐतिहासिक मंदिर न सिर्फ झारखंड की धार्मिक पहचान है, बल्कि पूरे भारत के लिए शिवभक्ति का सबसे पवित्र केन्द्र है। सावन के महीने में जब कांवड़िए सुल्तानगंज से 105 किलोमीटर नंगे पांव चलकर “बोल बम” के जयकारों के साथ देवघर पहुंचते हैं, तो पूरा झारखंड श्रद्धा और भक्ति का जीवंत प्रदेश बन जाता है। बाबा बैद्यनाथ मंदिर, जो भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल है, झारखंड को एक विशेष आध्यात्मिक मानचित्र पर स्थापित करता है। यह मंदिर केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि झारखंड की परंपरा, संस्कृति और समर्पण का प्रत्यक्ष प्रमाण है — जहां हर साल इतिहास, पौराणिकता और आधुनिकीकरण एक साथ मिलकर भक्ति का अद्भुत संगम रचते हैं
इतिहास: रावण की तपस्या से शुरू होती है बाबा धाम की कथा
प्राचीन काल की मान्यता के अनुसार, रावण भगवान शिव का परम भक्त था। वह चाहता था कि भगवान शिव स्वयं लंका में आकर निवास करें। इसके लिए उसने कठोर तपस्या की और अपने दस सिरों की आहुति तक दे दी। भगवान शिव उसकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उसे एक शिवलिंग प्रदान किया। परंतु एक शर्त रखी — "तुम इस शिवलिंग को जहां एक बार जमीन पर रख दोगे, वह वहीं स्थापित हो जाएगा।"
रावण शिवलिंग को लेकर लंका की ओर निकल पड़ा, लेकिन रास्ते में उसे लघुशंका लगी। वह देवघर के पास रुका और एक ब्राह्मण को शिवलिंग पकड़ाकर गया (जो वास्तव में भगवान विष्णु द्वारा भेजे गए गणेश थे)। गणेश ने शिवलिंग को वहीं जमीन पर रख दिया। जब रावण लौटा, तो लाख कोशिशों के बावजूद वह शिवलिंग को हिला नहीं सका। क्रोधित होकर रावण ने शिवलिंग को दबा दिया, जिससे वह और गहरे धंस गया। तब से यह शिवलिंग वहीं स्थापित है और यह स्थान बाबा बैद्यनाथ धाम कहलाता है।
ऐतिहासिक निर्माण और स्थापत्य
जहां तक ऐतिहासिक साक्ष्यों की बात है, ऐसा माना जाता है कि बाबा बैद्यनाथ मंदिर का वास्तविक निर्माण राजा पुराण मल द्वारा 16वीं शताब्दी के आसपास करवाया गया था। इस मंदिर की बनावट उत्तर भारत की पारंपरिक नागर शैली में है। मंदिर का मुख्य शिखर लगभग 72 फीट ऊँचा है और इसके चारों ओर 21 सहायक मंदिर बने हुए हैं, जिनमें अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थित हैं। मंदिर परिसर में प्राचीन शिलालेख, स्थापत्य चिन्ह और वास्तुशिल्प ऐसी स्पष्ट गवाही देते हैं कि यह स्थान झारखंड की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।
ग्रंथों और पुराणों में उल्लेख
बाबा बैद्यनाथ मंदिर का उल्लेख शिव पुराण, स्कंद पुराण, पद्म पुराण सहित कई धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।
शिव महापुराण में इसे विशेष स्थान दिया गया है और इसे कामना लिंग कहा गया है — अर्थात यहां जो भक्त सच्चे मन से प्रार्थना करता है, उसकी मुराद जरूर पू
झारखंड की धार्मिक पहचान
इस मंदिर ने झारखंड को एक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय धार्मिक मानचित्र पर स्थापित किया है। आज भी, सावन और महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। यह मंदिर न केवल एक धार्मिक धरोहर है, बल्कि यह झारखंड की सांस्कृतिक आत्मा, जन-आस्था और ऐतिहासिक गर्व का प्रतिनिधि है।
धार्मिक महत्व: जहां शिव और शक्ति एक साथ पूजे जाते हैं
बाबा बैद्यनाथ को कामना लिंग कहा जाता है — यानी यहां सच्चे मन से मांगी गई मन्नतें पूरी होती हैं। यह न केवल ज्योतिर्लिंग है, बल्कि शक्ति पीठ भी माना जाता है, जहाँ माँ सती का हृदय गिरा था। हर साल सावन और महाशिवरात्रि के मौके पर लाखों श्रद्धालु देशभर से यहां आते हैं। मंदिर में 24 घंटे जलाभिषेक की परंपरा है, और हर भक्त बाबा के दरबार में अपने दुखों का समाधान लेकर आता है।
श्रावणी मेला: जहां आस्था का सैलाब उमड़ता है
सावन महीने में लगने वाला श्रावणी मेला पूरे भारत के धार्मिक आयोजनों में एक प्रमुख स्थान रखता है। भक्त सुल्तानगंज (बिहार) से गंगा जल लेकर 105 किलोमीटर नंगे पांव यात्रा करते हैं। रास्ते भर “बोल बम”, “हर-हर महादेव” जैसे जयकारों से वातावरण गूंजता रहता है। देवघर शहर इन दिनों पूरी तरह कांवड़ियों के रंग में रंगा रहता है — जगह-जगह शिविर, भजन-कीर्तन, सेवा केंद्र और भक्ति की गूंज।
कैसे पहुंचें बाबा धाम?
- हवाई मार्ग: देवघर एयरपोर्ट अब पूरी तरह चालू है, जहां से दिल्ली, कोलकाता, पटना जैसी जगहों से सीधी उड़ानें मिलती हैं।
- रेल मार्ग: देवघर जंक्शन देश के कई प्रमुख स्टेशनों से जुड़ा हुआ है।
- सड़क मार्ग: झारखंड, बिहार और बंगाल के हर कोने से सीधी बस और टैक्सी सेवा उपलब्ध है।
प्रशासन की तैयारी: सुरक्षा, सेवा और सुविधा का संगम
- झारखंड सरकार और स्थानीय प्रशासन श्रावणी मेले के दौरान चाक-चौबंद इंतजाम करता है:
- पूरे शहर में CCTV कैमरे, ड्रोन निगरानी
- पुलिस बल, महिला सुरक्षाकर्मी, हेल्थ टीम, फायर ब्रिगेड
- मोबाइल टॉयलेट, स्वच्छ जल, भोजनालय, आराम स्थल
- ऑनलाइन दर्शन बुकिंग, QR कोड स्कैनिंग, डिजिटल दान
हर सुविधा को डिजिटल और सुगम बनाया जा रहा है ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
पंडा समाज: परंपरा के संरक्षक
बाबा धाम में पूजा कराने का कार्य पंडा समाज द्वारा किया जाता है। ये पीढ़ियों से श्रद्धालुओं की वंशावली और पूजा विधि संभालते आए हैं। आज भी कोई भी बड़ा व्यक्ति या आम भक्त यहां बिना पंडा के दर्शन की कल्पना नहीं करता। पंडा समाज को अब पहचान पत्र, रजिस्ट्रेशन और सरकारी प्रशिक्षण भी दिया गया है।
बाबा धाम कॉरिडोर: आध्यात्मिकता और आधुनिकता का मेल
झारखंड सरकार द्वारा बाबा धाम कॉरिडोर नामक बड़ी परियोजना शुरू की गई है जिसमें मंदिर परिसर को विश्वस्तरीय तीर्थस्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है:
- चौड़े रास्ते, नया प्रवेश द्वार
- डिजिटल सूचना केंद्र, संगीत फव्वारे
- वातानुकूलित प्रतीक्षालय, बैठने की सुविधा
- हरियाली, प्लास्टिक मुक्त परिसर
अब बाबा के दर्शन के लिए लंबी लाइनें नहीं, बल्कि एक प्रणालीबद्ध और आरामदायक अनुभव मिलेगा।
श्रद्धा, परंपरा और बदलाव का जीवंत संगम है बाबा धाम
देवघर का बाबा बैद्यनाथ मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह दर्शाता है कि कैसे भारत में पुरानी परंपराएं और आधुनिक व्यवस्थाएं साथ चल सकती हैं। यहाँ का वातावरण, कथाएं, मंदिर की बनावट, पंडा समाज की सेवा और सरकार की सजगता — सब मिलकर बाबा धाम को भारत का एक अद्वितीय तीर्थस्थल बनाते हैं। जब श्रद्धालु शिवभक्ति में डूबे “हर-हर महादेव” की गूंज के साथ बाबा को जल चढ़ाते हैं, तो लगता है जैसे देवघर स्वयं शिवमय हो गया हो।